हर मिट्टी के दिये नहीं बनते
मिट्टी में बरक्क़त होनी चाहिए
पारखी हाथों से काढ़ कर ऐसी मिट्टी
बड़ी लगन से चाक पे घुमा घुमा घुमा
छोटे छोटे आकार बनाता
सुबह शाम पकाता सजाता
निहारता सँवारता
अपनी परख, लागत और मेहनत से
पूरे साल बरक्क़त वाले दिये बनाता
कुम्हार, सपरिवार
और जतन से सँभाल के रखता इन्हें हमारे लिए
यूँ कि हमारे मुंडेरों पे, बैलकनी पे
आँगन में, छतों पर, हमारे घर
दिवाली की रात बरक्क़त पहुंचे
और हम अनाड़ी, उफ़्फ़
ग्रिड की बिजली और
एल ई डी की लाईटिंग की चकाचौंध से
साल-दर-साल, हर साल
लक्ष्मी जी को रिझाने में लगे पड़ें हैं
चलो बरक्क़त वाले दिये सजाते हैं इस बार
(गुड़गांव, अक्तूबर 28, 2015)
-प्रारब्ध आर. जयपुरियार
मिट्टी में बरक्क़त होनी चाहिए
पारखी हाथों से काढ़ कर ऐसी मिट्टी
बड़ी लगन से चाक पे घुमा घुमा घुमा
छोटे छोटे आकार बनाता
सुबह शाम पकाता सजाता
निहारता सँवारता
अपनी परख, लागत और मेहनत से
पूरे साल बरक्क़त वाले दिये बनाता
कुम्हार, सपरिवार
और जतन से सँभाल के रखता इन्हें हमारे लिए
यूँ कि हमारे मुंडेरों पे, बैलकनी पे
आँगन में, छतों पर, हमारे घर
दिवाली की रात बरक्क़त पहुंचे
और हम अनाड़ी, उफ़्फ़
ग्रिड की बिजली और
एल ई डी की लाईटिंग की चकाचौंध से
साल-दर-साल, हर साल
लक्ष्मी जी को रिझाने में लगे पड़ें हैं
चलो बरक्क़त वाले दिये सजाते हैं इस बार
(गुड़गांव, अक्तूबर 28, 2015)
-प्रारब्ध आर. जयपुरियार
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